Monday, July 4, 2011

India will never prosper unless ?

भारत का तब तक उत्थान न होगा.

जब तक यहाँ शहीदों का समुचित सम्मान न होगा,
निश्चित समझो तब तक भारत का उत्थान न होगा.

वेदों ने बलिदान शब्द को मुक्त कंठ से गाया,
यज्ञों में मानव आहुति को सर्वश्रेष्ठ बतलाया.
सत्य अहिंसा के बल पर हमने आज़ादी पायी,
यह असत्य परिभाषा हमको अब तक गयी पढ़ायी.

जिनके पौरुष और पराक्रम ने यह दिन दिखलाया,
उन सबको षड्यन्त्र पूर्वक अब तक  गया मिटाया.

गान्धी ने सन बाइस में जब आन्दोलन रुकवाया,
तब कुछ क्रान्तिकारियों ने अपना संगठन बनाया.
एक जनवरी सन पच्चिस को इश्तहार छपवाया,
कैसा परिवर्तन होगा विस्तार सहित बतलाया.

अंग्रेजों को अंग्रेजी में लिखकर यह समझाया,
भारत छोडो बरना समझो काल तुम्हारा आया.

नौ अगस्त पच्चिस को काकोरी में किया धमाका,
खुली चुनौती देकर जिसने ब्रिटिश राज्य को हाँका.
हिन्दुस्तानी प्रजातन्त्र का संविधान निर्माता,
बलिदानी प्रेरणा-श्रोत ग़ज़लों का वह उद्गाता.

अपनी आहुति देकर उसने ऐसी आग लगायी,
गान्धी  की तमाम कोशिश के बाद न जो बुझ पायी.

आखिर सत्रह साल बाद उन्नीस सौ ब्यालिस आया,
अंग्रेजों के नाम खुला ख़त गान्धी ने भिजवाया.
उसमें लिक्खा-"सभी पढ़ें जो चिट्ठी मैंने दी है,
मैं हूँ वह नाकिस जिसने तुम सबकी रक्षा की है.

बीस साल तक भीख माँगकर मैंने क्या पाया है,
वह मेरी गलती थी मुझको आज समझ आया है.

तुम लातों के भूत बात  से  नहीं  मानने  वाले, 
अब मैं कहता हूँ- जिसको जो करना हो कर डाले."
काश! यही ख़त सन बाइस में गान्धीजी भिजवाते,
तो इतने सारे शहीद क्यों अपनी जान गँवाते.

इससे तो यह सिद्ध हुआ बिस्मिल की बात सही थी,
अंग्रेजों का भूत भगाने की बस दवा यही थी.

गान्धी ने सर्वथा दोगली नीति यहाँ अपनायी,
पहले आग लगायी फिर फायर ब्रिगेड पहुँचायी.
जिससे वायसराय कभी नाराज न होने पाये,
और छोड़ना पड़े देश तो गान्धी को दे जाये.

वही हुआ जब सैंतालिस में मिली हमें आज़ादी,
टुकड़ों में बँट गया देश नफरत ऐसी फैला दी.

लोकतन्त्र की खाल ओढ़कर वंशवाद घुस आया,
राष्ट्रपिता के पुत्रों ने गान्धी का नाम भुनाया.
गोरखपुर में बिस्मिल की अन्त्येष्टि जहाँ पर की थी,
उस स्थल को राजघाट की संज्ञा सबने दी थी.

गान्धी के मानस पुत्रों ने की कैसी चतुराई,
बिस्मिल को विस्मृत करने की विस्तृत नीति बनाई.

भारत छोड़ो आन्दोलन महिमामंडित करवाया,
गान्धी की समाधि पर सुन्दर राजघाट बनवाया.
'काकोरी षड्यन्त्र काण्ड' को भूले भारतवासी,
गोरखपुर के राजघाट की रही न याद जरा सी.

नौ अगस्त सन ब्यालिस के स्टेच्यू बने हुए हैं,
आगे-आगे गान्धी पीछे चमचे तने हुए हैं.

बिस्मिल औ' अशफाक किसी का कोई नाम नहीं है,
पूछो तो कहते हैं इनका कोई काम नहीं है.
सन उन्निस सौ बाइस में जब गान्धी जा दुबके थे,
तब कुछ सरफ़रोश ही थे जो सूरज से चमके थे.

अगर उस समय बिस्मिल औ' अशफाक न आगे आते,
निश्चित समझो अब तक हम आजाद नहीं हो  पाते.

आज समूचा देश क्रान्ति की भाषा भूल चुका है,
लोकतन्त्र की अर्थवान परिभाषा भूल चुका है.
देश-धर्म पर मर मिटने का जज्वा आज नहीं है,
सरफ़रोश लोगों का वैसा मजमा आज नहीं है.

जब तक बिस्मिल जैसे युवकों का गुणगान न होगा,
निश्चित समझो तब तक भारत का उत्थान न होगा.



8 comments:

KRANT M.L.Verma said...

Friends1
This poem was published in Indraprasth Bharati
a magazine of Hindi Akadami Delhi and last year in the Panchjanya (Hindi Weekli) from Delhi.
I have made some ammendments in it and have tried to make it better.
Kindly do not hesitate to post your comments so that I may improve myself.
Even at the age of 64 I am a student who is still learning from his life itself.
I do not know the latest techniques of computer
I simply type and post my views whether they be in prose or poetry, but please keep it in mind they are of mine, only mine.
For the last 54 years from the age of 10 years I have been writting poems originated from my inner instinct.
Rest is upto my viewers who like or dislike but they are in real sense my constructive strength, and that strength I do not want to loose at any cost.

नीरज द्विवेदी said...
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नीरज द्विवेदी said...

वर्मा जी, बहुत अच्छी लगी कविता, यथार्थवादी कविता. मैं तो आपका Fan हो गया श्रीमान. मैं उम्र में आपसे बहुत छोटा हू, पर आपको ये विश्वास दिलाता हू की जिस ध्वज के आप ध्वजवाहक बने हैं, मैं आपका अनुगामी हू और इस ध्वज को आगे भी झुकने नहीं दूंगा. ये देश कभी भी जागे, इसे जगाने की अलख आपके आशीर्वाद से जलाता रहूँगा.

Life is Just a LIfe

Mahatma Gandhi ka Sach

KRANT M.L.Verma said...

My dear Neeraj!
I have full confidence on the youngesters like you who will carry forward my mission upto the ultimate goal.
God bless you the strength.

shrenik said...
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shrenik said...

क्रांत लालजी मैं माफ़ी चाहता हूँ . अगर मेरी बाते आपको चोट पहुंचा रही हो . आप का आप की कवितावोंका आप की उम्र का मैं सम्मान करता हूँ,
....... लेकिन आपकी बापू के प्रति विचार देख कर बहुत दुख हुवा. माना की इतिहास में कुछ गलती यां जरुर हुई हो . लेकिन मैं आपको ये बता दूँ की चाहे महात्मा गाँधी हो या स्वतंत्रता के लिए बलिदान दिए कोई क्रांतिकारी महापुरुष हो. हम (युवान पीढ़ी) लोग इन सारे युगपुरुशोंकी पावं की धुल भी नहीं है . इसलिए हम जवान लोगोंको बापू के प्रति कुछ गलत सन्देश न देते हुए ये सिखाइए की अगर कुछ गलत हुवा हो तो उन को सुधारों न की किसी के ऊपर गलत बयां बाजी करो. जय हिंद.

shrenik said...
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shrenik said...

.............महात्मा के प्रति..................
भला, बुरा, कपट,कहंके गाँधी पे निकाला फर्मान
शांत सयंमी मूर्ति कह गई सबको सन्मति दे भगवान

शाहिदोंका सम्मान न होवे है आपका भ्रम ये.
... ... बिस्मिल, अशफाक रहते हमारे दिल में है

युवाओंको जागृत कर बातें तो आपने खूब है कही
हिंसा के तरफ झुकाया हमें कहीं ये पाप तो नहीं

कुछ सालों बाद दुनिया मैं जब रन होगा
फैलेगी शांति अहिंसा से ये परमात्मा का वचन होगा .

(सरजी आपने बापू के गांधीवाद को गलत कहाँ इसलिए ये भी सुनिए)

अगर मिलती स्वतंत्रता १९३० को मिटाकर गाँधीवाद
आसाम, बिहार की तरह देश को जखडता आज नक्षलवाद

अब आप कहेंगे अरे ए मुरख ये क्या बात हुई.
कहत सभी हिंसा वादी,अपनी बात कहने की यही परंम्परा तो चलती आई

बिस्मिल, अशफाक भगत आजाद, आज अगर होते
स्वराज्य को सुराज्य बनाने अहिंसा के मार्ग पे ओ चलते

देश पे मर मिटने वाले और भारत के अनेक क्रांतीवादी
इन सभी को नमन मेरा मैं हूँ एक गाँधीवादी .