Wednesday, September 14, 2011

Linguistic Love of Bismil

बिस्मिल का हिन्दी-प्रेम

"न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना.
मुझे वर  दे यही  माता !  रहूँ  भारत  पे  दीवाना.

मुझे हो प्रेम हिन्दी से, पढूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दी;
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहनना- ओढना- खाना.

रहे   मेरे   भवन  में  रौशनी ,   हिन्दी - चिरागों  की;
कि जिसकी लौ पे जलकर खाक हो 'बिस्मिल'-सा परवाना." 
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मन की लहर पुस्तक से साभार  

2 comments:

नीरज द्विवेदी said...

Bahut Accha Verma Ji...

ZEAL said...

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"न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना.
मुझे वर दे यही माता ! रहूँ भारत पे दीवाना.

Poet's love for Hindi and his country is mesmerizing. Hats off to him.

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