Sunday, February 5, 2012

Change them all

सियासत वनाम कौमियत
     (राजनीति वनाम राष्ट्रनीति)

सियासत कौमियत में ठन गयी है , 
हमारे  बीच  ये  रस्साकसी है.

मिलाकर हाथ क्यों देते हो धोखा,
मियाँ! जब दिल-से-दिल मिलता नहीं है.

वो कहते हैं यहाँ अम्नो-अमन है,
हमें तो वह कहीं दिखता नहीं है.

यहाँ मुद्दत से खिचड़ी पक रही है,
                                                                मगर कुछ आपसे होता नहीं है.

हमेशा मार खाते जा रहे हो,
पलट कर मारना आता नहीं है.

जिसे देखो वही पीछे पड़ा है,
कोई क्योँ आपसे डरता नहीं है.

वजह क्या है जरा शिद्दत से सोचो,
अभी तक आपने सोचा नहीं है.

समझते हैं सब इसमें झूठ क्या है,
हमारी कौम में एका नहीं है.

हमें इमला रटाया जा रहा है,
असलियत कोई समझाता नहीं है.

यहाँ जयचन्द माहिल मीरजाफर,
हैं कितने यह कोई गिनता नहीं है.

ये सब हैं कौम के गद्दार इनसे,
निबटना आपको आता नहीं है.

अजब हालात ऐसे बन गये हैं,
ये बदलेंगे अभी लगता नहीं है.

लड़ाते जा रहे आपस में हमको,
हुकूमत का चलन बदला नहीं है.

बदलने की कोई तरकीब सोचो,
पके पत्तों में कुछ रक्खा नहीं है.

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