Friday, January 11, 2013

No mother will give birth to a poet?

वरना कोई माँ कवि को जन्म नहीं देगी?

कवि के आँसू बरसात अगर बन जाते तो बदली में छुपकर चाँद न सावन में रोता,
भावुकता का प्रतिकार अगर जग दे पाता तो कवि जैसा कोई भी हृदय नहीं होता.

दोपहरी अगर शरीर नहीं झुलसाती तो सुख की चाँदनी थपकियाँ देने क्यों आती?
अस्तित्व बुढ़ापे का जग से मिट जाता तो मासूम जबानी आज किसी को क्यों भाती?

गोदी में पले हुए बचपन की याद करो जो होता है निर्दोष जिसे कुछ चाह नहीं,
वह भोलापन जब आँखों में बस जाता है फिर रहती है मुझको जग की परवाह नहीं.

पर हाय! जगत के कीचड़ तुझमें फँसते ही "मेरा-तेरा" बनकर फितूर छा जाता है,
फिर हो जाता है भोलेपन का सर्वनाश हर ओर द्वेष से पूर्ण विश्व दिखलाता है.

दुनिया में थोड़ी उम्र जिसे मिल जाती है वह सारे जग का शहंशाह बन जाता है,
फिर नहीं समझता है वह यह जग मेरा है या मेरा भी कुछ जग वालों से नाता है.

वाणी के मूक पुजारी धारा में बहकर कुछ लिखने को आते पर कुछ लिख जाते हैं,
उनमें सौन्दर्य-व्यथा अक्सर लग जाती है इसलिये महाकवि बनने से रह जाते हैं.

वैसे तो इस दैवी-प्रदत्त प्रतिभा का कुछ विरले ही जग में सदुपयोग कर पाते हैं,
वरदान उन्ही को सरस्वती माँ देती है जिससे वे अपना नाम अमर कर जाते हैं.

जब होने लगता मानवता का सर्वनाश जब पशुता अपना ताण्डव नृत्य दिखाती है,
तब मधुर लेखनी बन जाती विषधर कटार वाणी माँ सरस्वती काली बन जाती है.

जब दरिद्रता पर होने लगता अनाचार निर्दोष त्रस्त हो हाहाकार मचाते हैं,
तब छोड़ प्रिया की कमल-सेज भावना-पूत जो कवि होते हैं विद्रोही बन जाते हैं.

मंजिल पर जाकर किसको गौरव नहीं मिला सच पर बलि देकर किसने सुयश नहीं पाया,
जिसको न मृत्यु ने अपना ग्रास बनाया हो धरती पर अब तक ऐसा मनुज नहीं आया.

जब मानव को मानव से प्रेम नहीं होगा तो मानवता कैसे जिन्दा रह पायेगी?
जिसकी भावुकता की जग हँसी उड़ाएगा निश्चय उसकी भावना क्रान्त हो जायेगी.

निर्ममता ईर्ष्या अहंकार से दबे हुए मालूम नहीं इस प्राणि मात्र का क्या होगा?
पर यह सच है जिसने जैसा भी किया कर्म परिणाम उसी अनुरूप सदा उसने भोगा.

मैं पुन: कह रहा हूँ कवि के उद्गारों को दिल से समझो फिर उस पर सोच विचार करो,
वरना कोई माँ कवि को जन्म नहीं देगी इसलिये सदा ही कवि का तुम सम्मान करो.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

कवि, भविष्य तुम कह डालो,
वर्तमान को सह डालो।