Saturday, February 12, 2011

घुट्टी में भाँग

 अंग्रेजों का राज रहा इसलिए यहाँ अंग्रेजी है।
 संविधान के कारण आई इस भाषा मेँ तेजी है।

 हिन्दी होकर भी हम पर अंग्रेजी लादी जाती है।
 पैदा  होते  ही  घुट्टी में भाँग पिला  दी जाती है।
 हम उसको अपना लेते हैं जो सभ्यता विदेशी है।
चले गये अंग्रेज राज फिर भी करती अंग्रेजी है।

जिस भाषा ने सारी वसुधा को कुटुम्ब बतलाया है।
उसके ग्रन्थोँ का अनुवाद कहाँ से होकर आया है?
ज्ञान और विज्ञान सभी का मूल स्रोत तो देशी है।
किन्तु हमें समझाया जाता यह सम्पदा विदेशी है।

बचपन  में जो बात हमारे दिल दिमाग में बैठ गयी।
उस रस्सी को भले जला दो पर क्या उसकी ऐंठ गयी?
यह कैसी तरकीब निकाली अब तक यही पहेली है।
भारत को गारत करने की कूटनीति अलबेली है।

 यवन यहाँ पर आये तो तम्बाकू हमको खिला गये।
 जब  आये अंग्रेज यहाँ पर चाय बनाकर पिला गये।
 खुद जब किये प्रयोग समझ में आया चाल विदेशी है।
 निकोटीन के कारण तम्बाकू और चाय में तेजी है।

दोनों मीठे जहर पिला पुंसत्व हमारा छीन लिया।
और डालडा खिलाखिलाकर हमें हृदय से हीन किया।
बँटवारा कर गये देश का गिजा हमारी ले ली है।
आज़ादी के बाद खून की होली हमने खेली है।

जब देखो तब आज हमें आपस में ये लड़वाते हैं।
विश्व बैंक से कर्ज़ा देकर हमें गुलाम बनाते हैं।
क्रिकेट मैच की प्रायोजक कम्पनी सभी अंग्रेजी हैं।
विज्ञापन के  कारण आती मँहगाई में तेजी है।

कैसे  कैसे हथकण्डे आये दिन अपनाये जाते।
ग्लोबलाइजेशन के धोखे में हम मरवाये जाते।
आज देश के बच्चे बच्चे पर ऋण भार विदेशी है।
और इसे जो  बढ़ा रही है वह  केवल अंग्रेजी है।

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