Saturday, July 2, 2011

Country or a tool ?

देश है या झुनझुना?

क्या यही दिन देखने को था तुम्हें हमने चुना,
जिस तरह चाहो बजा लो देश है या झुनझुना?

ताक पर रखकर नियम क़ानून सारे क़ायदे,
सो गया जनतन्त्र सिरहाने लगाकर वायदे;
आदमी है सिर्फ़ वोटर-लिस्ट का पन्ना घुना,
जिस तरह चाहो बजा लो देश है या झुनझुना?

हैं विदेशी साजिशें फिर देश में सुरसा मुखी,
धर्म का धारक सकल सामान्य जन सबसे दुखी;
भूख का हल खोजते हैं पेट रखकर कुनमुना,
जिस तरह चाहो बजा लो देश है या झुनझुना?

गोल बैंगन की तरह जो थालियों में आ गये,
दर असल वे लोग ही यह लोकतन्त्र पचा गये;
आम जनता की समस्या को यहाँ किसने सुना,
जिस तरह चाहो बजा लो देश है या झुनझुना?

4 comments:

KRANT M.L.Verma said...

My dear viewers!
I had written this navgeet long long ago it was published in many papers. magazines and souvenirs.
Now I wanted to explore it on internet through my blog. If any one of its viewers like it or post a comment on it it would be my pleasure and inspiration to give you some more verses in series. Till then Namaskar!

Rakesh Kumar said...

आपके ब्लॉग पर आकर आपके बारे में जानकर और आपकी शानदार अभिव्यक्ति पढकर बहुत अच्छा लगा.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.आपका हार्दिक स्वागत है.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय क्रांत एम एल वर्मा जी
सादर अभिवादन !

आपके यहां पहली बार पहुंचा हूं …
रचनाएं पढ़ कर अच्छा लगा ।

हैं विदेशी साजिशें फिर देश में सुरसा मुखी,
धर्म का धारक सकल सामान्य जन सबसे दुखी;
भूख का हल खोजते हैं पेट रखकर कुनमुना,
जिस तरह चाहो बजा लो देश है या झुनझुना?

हम सबकी व्यथा को उकेरा है आपने ।
अब यही कहना पड़ रहा है-
क्या यही दिन देखने को था तुम्हें हमने चुना,

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

रंजना said...

कितना सही कहा आपने...

रचना का भावपक्ष जहाँ उद्वेलित करने में समर्थ है,वही इसका कला पक्ष अपने सौन्दर्य से मंत्रमुग्ध कर देने वाला है...
सुन्दर भावपूर्ण और prerak is रचना हेतु आपका बहुत बहुत आभार....