Thursday, May 31, 2012

Human's Cry

मानवता की पुकार

"अब धरा पर धर्म कम होने लगा
 न्याय का क्रिया-करम होने लगा

ताक पर रख दी गयी है सभ्यता
आदमी अब बेशरम होने लगा

जंगे-आज़ादी की क्या कीमत रही
अब तो आज़ादी का ग़म होने लगा

हमने देखा है न देखा जायेगा
सामने जुल्मो-सितम होने लगा

 'क्रान्त' हे भगवान! तू खामोश है
 तेरी गीता का भरम होने लगा"

नोट: उपरोक्त गज़ल मेरी पुस्तक "धूप के आइने" से है यह पुस्तक सन १९८० में प्रकाशित हुई थी

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