Thursday, May 31, 2012

Review of Maati Ki Mahak (Book)

माटी की महक : एक समीक्षा
 
"भीड़ की आँखें" लेकर "नीम,पीपल और बरगद के शहर" घूमते हुए "जातक काव्य माला" पिरोकर "माटी की महक" से हिन्दी काव्य जगत में श्रीवृद्धि करने का जो स्तुत्य प्रयास प्रोफेसर लल्लन प्रसाद जी ने किया है उसकी यदि सोंधी-सोंधी समीक्षा न की जाये तो यह धृष्टता ही कही जायेगी
 
प्रसाद जी की तीनों ही कृतियाँ मेरे पास हैं आज ही यह चौथी कृति प्राप्त हुई है. मुझसे पहले मेरी पत्नी ने पूरी पुस्तक पढ़ डाली. वे स्वयं भी एक विदुषी महिला हैं उनकी जो प्रतिक्रिया थी सबसे पहले बात उसी से क्यों न की जाये.
 
बकौल उनके कृतिकार में आयु की परिपक्वता के साथ चिन्तन भी है और चिन्ता भी. चिन्तन यह कि भौतिक विकास की आपाधापी में हम कहाँ से कहाँ पहुँच गये और चिन्ता यह कि सब कुछ इसी तरह परिवर्तित होता गया तो आगे क्या होगा?
 
अपनी अर्द्धांगिनी की बात को काटने का न तो मैं कोई प्रयास ही करूँगा और न ही इसकी यहाँ पर कोई आवश्यकता भी है. बहरहाल सीधे-सीधे कृति पर आया जाये.
 
लगभग ८८ पृष्ठ की पुस्तक में कुल ४६ कविताएँ हैं अन्त की हाइकू कविताओं को छोडकर. जिन पाँच तत्वों से मिलकर यह मानव शारीर बना है उनमें धरती या मिट्टी का तत्व प्रमुख है. प्रसाद जी का सम्पूर्ण चिन्तन मिट्टी को खोती जा रही खुश्बू को लेकर है जो इस कृति की कमोवेश सभी कविताओं में स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है.
 
जीवन यात्रा शीर्षक से लिखी पहली कविता की ये पंक्तियाँ देखें:
"पूरी यात्रा में/ जो दिया जो किया/ वही पाया/ काँटे बोये पाँव चुभोये/ खुश्बू बाँटी/यश पाया/ खाली हाथ आया/ खाली हाथ गया."
 
पूरब-पश्चिम कविता में आयातित अन्धानुकरण पर उनकी सोच ने सीधा-सीधा समीकरण ही खोज निकाला. आप भी रू-ब-रू होइए: 
"पूरब में पश्चिम की पाँव पसारती उपभोक्ता संस्कृति/ और पश्चिम में भारत का योग/ नई जीवन -शैली का संयोग!"
 
परिवर्तन की आँधी से स्वयं को कैसे बचाया जाये इसका यदि आपको थोड़ा-सा भी दर्द है तो प्रसाद जी की सद्य:प्रकाशित कृति "माटी की महक" अवश्य पढ़िये मेरा विश्वास है आपका वह दर्द कुछ कम होगा.
 
अभी फ़िलहाल इतना ही....
 
* डॉ. मदनलाल वर्मा 'क्रान्त'
समीक्षित कृति: माटी की महक प्रो० लल्लन प्रसाद साहित्य प्रकाशन दिल्ली मूल्य १७५ रूपये  

1 comment:

Unknown said...

Lol,such a bad review ..there is nothing much about the book which the readers were looking for.