बिस्मिल की बलिदान-कथा
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
मातृभूमि पर मिटने वाले अमर शहीद महान की.
जन्म शाहजहाँपुर में पंडित मुरलीधर के यहाँ लिया,
माता मूलमती ने उनको पालपोस कर बड़ा किया.
स्वामी सोमदेव से मिलकर जीवन का गुरुमन्त्र लिया,
भारत की दुर्दशा-व्यथा ने उनको बिस्मिल बना दिया.
क्रान्ति-बीज बोने की मन में कठिन प्रतिज्ञा ठान ली,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
पढ़ते थे तब गये लखनऊ अधिवेशन में भाग लिया,
बागी होकर वहाँ तिलक का बहुत बड़ा सम्मान किया.
अनुशीलन दल के लोगों से मिलकर गहन विचार किया,
हिन्दुस्तानी-प्रजातन्त्र का संविधान तैयार किया.
सुनियोजित ढँग से की थी शुरुआत क्रान्ति-अभियान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
मैनपुरी-षड्यन्त्र-काण्ड में बरसों आप फरार रहे,
कई किताबें लिखीं भूमिगत रहे समय के वार सहे
आम मुआफी में जब देखा घर के लोग पुकार रहे,
बिस्मिल अपने वतन शाहजहाँपुर आकर बेजार रहे.
घर वालों के कहने पर कपडे की शुरू दुकान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
दीवानों को अमन-चैन की नींद कहाँ आयी कभी,
इस चिन्ता में बिस्मिल को दूकान नहीं भायी कभी.
असहयोग आन्दोलन ठप हो गया खबर आयी तभी,
बिस्मिल को गान्धीजी की यह नीति नहीं भायी कभी.
छोड़ दिया घर पुन: पकड़ ली राह क्रान्ति-अभियान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
युवकों को खोजा जाकर पहले शाखाओं के जरिये,
चिनगारी सुलगाई ओजस्वी कविताओं के जरिये.
ज्वाला भड़काई भाषण की गरम हवाओं के जरिये,
हर सूबे में खड़ा किया संगठन सभाओं के जरिये.
इन्कलाब से फिजाँ बदल दी सारे हिन्दुस्तान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
स्वयं किताबें लिखीं, छ्पायीं,बेंची, फिर जो धन आया,
उससे शस्त्र खरीदे फिर बाग़ी मित्रों में बँटवाया.
सैन्य-शस्त्र-संचालन का था बहुत बड़ा अनुभव पाया,
इसीलिये बिस्मिल के जिम्मे सेनापति का पद आया
फिर क्या था! शुरुआत उन्होंने की सीधे सन्धान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
एक जनवरी सन पच्चिस को इश्तहार दल का छापा,
जिसको पढकर अंग्रेजों के मन में भारी भय व्यापा.
जिसकी जूती चाँद उसी की हो ऐसा अवसर ताका,
नौ अगस्त पच्चिस को मारा सरकारी धन पर डाका.
खुली चुनौती थी शासन को सरफ़रोश इंसान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
फिर क्या था बौखला उठी सरकार होंठ उसके काँपे,
एक साथ पूरे भारत में मारे जगह-जगह छापे.
बिस्मिल को कर गिरफ्तार चालीस और बागी नापे,
सबको ला लखनऊ मुकदमे एक साथ उनपर थोपे.
इतनी बड़ी बगावत कोई बात नहीं आसान थी,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
तख़्त पलटने की साजिश का बिस्मिल पर इल्जाम लगा,
लूटपाट हत्याओं का जिम्मा भी उनके नाम लगा.
कुछ हजार की ट्रेन डकैती पर क्या ना-इन्साफ हुआ,
पुलिस-गवाह-वकीलों पर सरकारी व्यय दस लख हुआ.
पागल थी सरकार लगी थी बजी उसकी शान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
जगतनारायणमुल्ला जैसे सरकारी वकील आये,
पर बिस्मिल के आगे उनके कोई दाँव न चल पाये.
आखिर उनकेअपने ही दल में गद्दार निकल आये,
जिनके कारण बिस्मिल के सँग तीन और फाँसी पाये.
बीस जनों को हुई सजाएँ साजिश थी शैतान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
जैसे ही यह खबर फैसले की अखबारों में आयी,
फ़ैल गयी सनसनी देश में जनता चीखी चिल्लायी.
नेताओं ने दौड़-धूप की दया-याचना भिजवायी,
लेकिन वायसराय न माना कड़ी सजा ही दिलवायी.
किसी एक को भी उसने बख्शीश नहीं दी जान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
आखिर को उन्नीस दिसम्बर सत्ताइस का दिन आया,
जब बिस्मिल, अशफाक और रोशन को फाँसी लटकाया.
दो दिन पहले सत्रह को राजेन्द्र लाहिड़ी झूल गये,
किन्तु हमारे नेता-गण उन दीवानों को भूल गये.
जिनकी खातिर मिली हमें आज़ादी हिन्दुस्तान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
मातृभूमि पर मिटने वाले अमर शहीद महान की.
जन्म शाहजहाँपुर में पंडित मुरलीधर के यहाँ लिया,
माता मूलमती ने उनको पालपोस कर बड़ा किया.
स्वामी सोमदेव से मिलकर जीवन का गुरुमन्त्र लिया,
भारत की दुर्दशा-व्यथा ने उनको बिस्मिल बना दिया.
क्रान्ति-बीज बोने की मन में कठिन प्रतिज्ञा ठान ली,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
पढ़ते थे तब गये लखनऊ अधिवेशन में भाग लिया,
बागी होकर वहाँ तिलक का बहुत बड़ा सम्मान किया.
अनुशीलन दल के लोगों से मिलकर गहन विचार किया,
हिन्दुस्तानी-प्रजातन्त्र का संविधान तैयार किया.
सुनियोजित ढँग से की थी शुरुआत क्रान्ति-अभियान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
मैनपुरी-षड्यन्त्र-काण्ड में बरसों आप फरार रहे,
कई किताबें लिखीं भूमिगत रहे समय के वार सहे
आम मुआफी में जब देखा घर के लोग पुकार रहे,
बिस्मिल अपने वतन शाहजहाँपुर आकर बेजार रहे.
घर वालों के कहने पर कपडे की शुरू दुकान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
दीवानों को अमन-चैन की नींद कहाँ आयी कभी,
इस चिन्ता में बिस्मिल को दूकान नहीं भायी कभी.
असहयोग आन्दोलन ठप हो गया खबर आयी तभी,
बिस्मिल को गान्धीजी की यह नीति नहीं भायी कभी.
छोड़ दिया घर पुन: पकड़ ली राह क्रान्ति-अभियान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
युवकों को खोजा जाकर पहले शाखाओं के जरिये,
चिनगारी सुलगाई ओजस्वी कविताओं के जरिये.
ज्वाला भड़काई भाषण की गरम हवाओं के जरिये,
हर सूबे में खड़ा किया संगठन सभाओं के जरिये.
इन्कलाब से फिजाँ बदल दी सारे हिन्दुस्तान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
स्वयं किताबें लिखीं, छ्पायीं,बेंची, फिर जो धन आया,
उससे शस्त्र खरीदे फिर बाग़ी मित्रों में बँटवाया.
सैन्य-शस्त्र-संचालन का था बहुत बड़ा अनुभव पाया,
इसीलिये बिस्मिल के जिम्मे सेनापति का पद आया
फिर क्या था! शुरुआत उन्होंने की सीधे सन्धान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
एक जनवरी सन पच्चिस को इश्तहार दल का छापा,
जिसको पढकर अंग्रेजों के मन में भारी भय व्यापा.
जिसकी जूती चाँद उसी की हो ऐसा अवसर ताका,
नौ अगस्त पच्चिस को मारा सरकारी धन पर डाका.
खुली चुनौती थी शासन को सरफ़रोश इंसान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
फिर क्या था बौखला उठी सरकार होंठ उसके काँपे,
एक साथ पूरे भारत में मारे जगह-जगह छापे.
बिस्मिल को कर गिरफ्तार चालीस और बागी नापे,
सबको ला लखनऊ मुकदमे एक साथ उनपर थोपे.
इतनी बड़ी बगावत कोई बात नहीं आसान थी,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
तख़्त पलटने की साजिश का बिस्मिल पर इल्जाम लगा,
लूटपाट हत्याओं का जिम्मा भी उनके नाम लगा.
कुछ हजार की ट्रेन डकैती पर क्या ना-इन्साफ हुआ,
पुलिस-गवाह-वकीलों पर सरकारी व्यय दस लख हुआ.
पागल थी सरकार लगी थी बजी उसकी शान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
जगतनारायणमुल्ला जैसे सरकारी वकील आये,
पर बिस्मिल के आगे उनके कोई दाँव न चल पाये.
आखिर उनकेअपने ही दल में गद्दार निकल आये,
जिनके कारण बिस्मिल के सँग तीन और फाँसी पाये.
बीस जनों को हुई सजाएँ साजिश थी शैतान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
जैसे ही यह खबर फैसले की अखबारों में आयी,
फ़ैल गयी सनसनी देश में जनता चीखी चिल्लायी.
नेताओं ने दौड़-धूप की दया-याचना भिजवायी,
लेकिन वायसराय न माना कड़ी सजा ही दिलवायी.
किसी एक को भी उसने बख्शीश नहीं दी जान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,
आखिर को उन्नीस दिसम्बर सत्ताइस का दिन आया,
जब बिस्मिल, अशफाक और रोशन को फाँसी लटकाया.
दो दिन पहले सत्रह को राजेन्द्र लाहिड़ी झूल गये,
किन्तु हमारे नेता-गण उन दीवानों को भूल गये.
जिनकी खातिर मिली हमें आज़ादी हिन्दुस्तान की,
आओ! तुमको कथा सुनाएँ बिस्मिल के बलिदान की,